ब्रेस्ट कैंसर में फायदेमंद है 3डी मैमोग्राफी


3डी मैमोग्राफी युवा महिलाओं में स्तन कैंसर को पकड़ने में कारगर टूल के रूप में साबित हो रही है, स्तन कैंसर के बढ़ते मामलों में युवा महिलाएं भी इसकी चपेट में आ रही हैं. ऐसे में 3डी मैमोग्राफी युवा महिलाओं में स्तन कैंसर को पकड़ने में कारगर टूल के रूप में देखी जा रही है. स्तन कैंसर के बढ़ते मामलों पर नई दिल्ली स्थित शालीमार बाग के मैक्स इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर केयर के कंसल्टेंट व आंकोलॉजिस्ट डॉ. विनीत गोविंद गुप्ता कहते हैं, स्तन कैंसर क्यों हो रहा है, इसके कारणों का हालांकि अभी पता नहीं लग पाया है, लेकिन यह तय है कि जितनी जल्दी इसका पता लगाया जाता है, ठीक होने के अवसर उतने ही बढ़ जाते हैं. उन्होंने कहा कि परंपरागत तौर पर मैमोग्राफी 2 डायमेंशनल ही होती है, जो ब्लैक एंड व्हाइट एक्सरे फिल्म पर नतीजे प्रदर्शित करती है. इसके साथ ही इन्हें कंप्यूटर स्क्रीन पर भी देखा जा सकता है. 3डी मैमोग्राम में ब्रेस्ट की कई तस्वीरें विभिन्न एंगलों से ली जाती हैं, ताकि एक स्पष्ट और अधिक आयाम की इमेज तैयार की जा सके. इस तरह के मैमोग्राम की जरूरत इसलिए है, क्योंकि युवावस्था में युवतियों के स्तन के ऊतक काफी घने होते हैं और सामान्य मैमोग्राम में कैंसर के गठन का पता नहीं लग पाता है. 3डी मैमोग्राम से तैयार किए गए चित्र में स्तन के टिश्यू के बीच छिपी कैंसर की गठान को भी पकड़ा जा सकता है. डॉ. गुप्ता बताते हैं कि 3डी मैमोग्राम के और कई फायदे हैं, जैसे कि ब्रेस्ट कैंसर की गांठ का जल्द से जल्द पता लगाकर उसका इलाज करना ही मैमोग्राम का मुख्य उद्देश्य है. इसके लिए 3डी इमेजिंग को काफी कारगर माना जाता है. उन्होंने कहा कि 3डी मैमोग्राम की तस्वीरों और सीटी स्कैनिंग में काफी समानता है और इसमें मरीज को परंपरागत मैमोग्राफी की तुलना में काफी कम मात्रा में रेडिएशन का सामना करना पड़ता है. डॉ. गुप्ता का कहना है कि 40 साल उम्र के आसपास पहुंच रहीं महिलाओं को हर साल मैमोग्राफी करने की सलाह दी जाती रही है. लेकिन अब उन्हें 3-डी इमेजिंग टैक्नोलॉजी का सहारा लेना चाहिए. इस टैक्नोलॉजी का फायदा हर उम्र की महिलाओं को मिल सकता है, लेकिन युवावस्था में कैंसर की गांठ यदि पकड़ में आ जाती है तो उसका कारगर इलाज करके मूल्यवान जान बचाई जी सकती है. दरअसल, 3डी मैमोग्राफी करने का तरीका बिल्कुल 2डी मैमोग्राफी की ही तरह होता है. इसमें महिला के स्तन को एक्सरे प्लेट और ट्यूबहेड के बीच रखकर कई एंगल से अनेक तस्वीरें ली जाती हैं. इस तरह की तस्वीरों को स्लाइसेस कहा जाता है. इतने बारीक अंतर से स्तन के फोटो स्लाइसेस बनाए जाते हैं कि उसकी निगाह से छोटी से छोटी कैंसर की गठान भी छिप नहीं पाती है और उजागर होकर स्क्रीन पर दिखाई देने लगती है.


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