51 शक्तिपीठों में विंध्याचल धाम क्यों है खास


नवरात्रों के शुरू होते ही हर जगह मां के जयकारे हर तरफ मंदिरों, घरों आदि सब तरफ से सुनने को मिलते हैं। मंदिरों के साथ-साथ घरों में भी मां की स्तुति का गायन सुनने को मिलता है। इन दिनों में हर कोई मां को खुश करके अपनी मुरादें पूरी करना चाहता है और मां से वरदान पाने की हर कोशिश करता है। इस लिहाज़ से देशभर की शक्तिपीठों का अपना खास महत्व है तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसे धाम के बारे में जो मां शक्ति के प्रमुख शक्तिपीठों में गिना जाता हैं। हम बात कर रहे हैं विंध्याचल धाम की यानि माता विंध्यवासिनी के धाम की। ये धाम उत्तर प्रदेश के वाराणसी ज़िले से लगभग 70 किलोमीटर की दूरी मिर्जापुर में स्थित है। धार्मिक स्थल होने के साथ-साथ इसका भौगोलिक दृष्टिकोण से भी अपना महत्व है। तो आइए जानते हैं इस धाम से जुड़े कुछ अनूठे रहस्य-उत्तर प्रदेश में गंगा नदी से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर मां विंध्यवासिनी का मंदिर स्थित है। मान्यताओं के अनुसार मां विंध्यवासिनी देवी दुर्गा का ही एक रूप है जिन्होंने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था। कहा जाता है कि विंध्यवासिनी वो है जो विंध्य पर निवास करती हैं। 
मां विंध्यवासिनी की उत्पत्ति 
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार देवी दुर्गा ने सभी देवी देवताओं को बताया था कि वे नन्द और यशोदा के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लेंगी ताकि वे सभी असुरों का नाश कर सकें। अपने कहे अनुसार माता ने उस दिन गी जन्म लिया जिस दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था।  जैसे कि आप सब जानते होंगे कि इस बात की भविष्यवाणी पहले ही हो चुकी थी कि देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान कंस की मृत्यु का कारण बनेगी। मृत्यु के खौफ़ के चलते कंस ने अपनी जान बचाने के लिए अपनी प्रिय बहन की सभी संतानों को मौत के घाट उतार दिया था लेकिन देवकी और वासुदेव की आठवी संतान के रूप में भगवान विष्णु जी ने श्री कृष्ण बनकर धरती पर जन्म लिया था। इसलिए भगवान की माया से वासुदेव ने अपने पुत्र के प्राणों की रक्षा करने के लिए उसे नन्द और यशोदा की पुत्री के स्थान पर रख दिया और उनकी पुत्री जो देवी का ही रूप थी, उन्हें लेकर वापस कारागार में लौट आए।


कंस द्वारा देवी की हत्या करने की कोशिश 
कहते हैं जब कंस को इस बात का पता चला कि उसकी बहन ने एक और संतान को जन्म दिया है तो वह फ़ौरन उसकी हत्या करने के लिए कारगार में पहुंच गया। लेकिन जब उसने देखा कि देवकी ने पुत्र को नहीं बल्कि पुत्री को जन्म दिया है तो उसे बड़ा हैरानी हुई की क्योंकि भविष्यवाणी के अनुसार देवकी और वासुदेव का आठवा पुत्र उसकी हत्या करेगा। फिर भी अपनी मौत से भयभीत कंस ने उस कन्या को ही मारने का निर्णय लिया लेकिन जैसे ही उसने उसे मारने के लिए उस पर प्रहार किया तो देवी दुर्गा अपने असली रूप में आ गई। साथ ही कंस को इस बात की चेतावनी भी दी कि उसकी हत्या करने वाला गोकुल में सुरक्षित है। इतना कहते ही माता अंतर्ध्यान हो गईं। ऐसी मान्यता है कि तब से देवी विंध्य पर्वत पर ही निवास करती हैं।
महिषासुर मर्दिनी
विंध्य पर्वत पर ही माता को समर्पित विंध्यवासिनी मंदिर स्थित है। यहां इन्हें देवी काली के रूप में भी पूजा जाता है। इसके साथ से ही देवी ने महिषासुर का वध किया था जिस कारण इन्हें महिषासुर मर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है। अपने इस रूप में या तो माता असुर का गला काटते दिखाई देती है या फिर उसका धड़ अपने हाथ में लिए दिखाई पड़ती है। महिषासुर मर्दिनी का अर्थ ही है जिसने महिषासुर का अंत किया है। माना जाता है कि अग्नि में भस्म होने के पश्चात् जहां जहां देवी सती के अंग गिरे थे वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। इस स्थान को भी शक्तिपीठ कहा जाता है और यहां माता काजल देवी के नाम से भी जानी जाती है।


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